प्रश्न: “संविधान के अनुच्छेद 262 के अंतर्गत, संसद कानून द्वारा किसी अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्याय-निर्णयन का प्रावधान कर सकती है।” उपरोक्त कथन के संदर्भ में भारत के विभिन्न राज्यों के बीच अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के कारण और समाधानों का वर्णन कीजिए।
“Under Article 262 of the Constitution, Parliament may by law provide for the adjudication of any dispute or complaint in respect of the use, distribution or control of the water of any inter-State river or river valley.” In the context of the above statement, describe the causes and solutions to inter-state river water disputes between different states of India.
उत्तर: भारत में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब एक ही नदी या नदी घाटी के जल के वितरण, उपयोग और नियंत्रण को लेकर विभिन्न राज्य आपस में असहमत होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 262 के तहत, इस प्रकार के विवादों का समाधान करने के लिए संसद कानून बना सकती है और विवादों के समाधान के लिए एक न्यायाधिकरण नियुक्त कर सकती है।
भारत के विभिन्न राज्यों के बीच अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के कारण
(1) जल वितरण की असमानता: कई नदियाँ विभिन्न राज्यों से होकर बहती हैं, जिसके कारण जल का वितरण असमान हो जाता है। निचले राज्यों को जल की कम आपूर्ति और ऊपरी राज्यों द्वारा जल के अधिक उपयोग से विवाद उत्पन्न होते हैं।
(2) जल के विभिन्न उपयोगों में प्राथमिकता: राज्य जल का विभिन्न उद्देश्यों, जैसे- कृषि, पीने, उद्योगों, आदि के लिए उपयोग करते हैं, जिससे उनके जल उपयोग पर विवाद उत्पन्न होता है। इन विभिन्न प्राथमिकताओं के कारण राज्यों में आपसी असहमतियां और विवाद हो सकते हैं।
(3) बांधों और जलाशयों का निर्माण: नदी पर बांधों का निर्माण और जलाशयों के कारण जल के प्रवाह में परिवर्तन आता है, जिससे निचले राज्यों में जल की कमी होती है। इन संरचनाओं के निर्माण में राज्यों के बीच सहमति न होने से विवाद बढ़ते हैं।
(4) प्रदूषण और जल संकट: नदियों में प्रदूषण और जल संकट से न केवल जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि जल के उपयोग पर विवाद भी उत्पन्न होते हैं। प्रदूषित जल का उपयोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जन्म देता है, जो विवादों का कारण बनते हैं।
(5) राजनीतिक और आर्थिक दबाव: राज्य जल के वितरण को अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के अनुरूप प्राथमिकता देते हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं। यह स्थिति न केवल राज्यों के हितों को प्रभावित करती है, बल्कि जल के वितरण को भी असंतुलित बनाती है।
भारत के विभिन्न राज्यों के बीच अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के समाधान
(1) अंतर्राज्यीय जल समझौतों की जरूरत: राज्य के बीच जल वितरण के विवादों के समाधान के लिए, स्पष्ट और पारदर्शी अंतर्राज्यीय जल समझौतों की आवश्यकता है। ये समझौते जल के न्यायसंगत वितरण में मदद कर सकते हैं और राज्यों के बीच स्थायी समाधान प्रदान कर सकते हैं।
(2) राष्ट्रीय जल आयोग की स्थापना: केंद्रीय जल आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय जल आयोग का गठन किया जा सकता है। यह आयोग राज्यों के बीच जल विवादों को हल करने, जल प्रबंधन नीति तैयार करने और जल संसाधनों के वितरण को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
(3) न्यायिक हस्तक्षेप और संवैधानिक ढांचा: संविधान के अनुच्छेद 262 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और अन्य न्यायाधिकरण जल विवादों के समाधान में हस्तक्षेप कर सकते हैं। न्यायिक प्रक्रिया से जल विवादों के त्वरित और न्यायपूर्ण समाधान की संभावना बढ़ जाती है।
(4) जल नीति में सुधार और समेकित प्रबंधन: भारत की जल नीति में सुधार की आवश्यकता है, जिससे जल संसाधनों के प्रबंधन में पारदर्शिता और समन्वय बढ़ सके। एकीकृत जल प्रबंधन के तहत राज्यों के बीच जल वितरण को सुनिश्चित किया जा सकता है।
(5) सहयोगी संघवाद और संवाद: राज्य और केंद्र के बीच निरंतर संवाद और सहयोग से जल विवादों का समाधान संभव हो सकता है। नियमित बैठकें और सहयोगी प्रक्रिया से राज्यों के हितों का सम्मान करते हुए जल वितरण को संतुलित किया जा सकता है।
भारत के विभिन्न राज्यों के बीच अंतर्राज्यीय जल विवादों का समाधान कानूनी, संवैधानिक और प्रशासनिक उपायों के माध्यम से किया जा सकता है। जल नीति में सुधार, न्यायिक हस्तक्षेप और सहयोगी संघवाद से जल विवादों का निराकरण किया जा सकता है।