प्रश्न: दक्षिण भारत में कला व साहित्य के विकास में कांची के पल्लवों के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
Estimate the contribution of Pallavas of Kanchi for the development of art and literature of South India.
उत्तर: पल्लव वंश (300–900 ईसवी) ने दक्षिण भारत को सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध किया। इनकी राजधानी कांचीपुरम ने स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला और साहित्य के एक नवीन युग की शुरुआत की। पल्लवों ने द्रविड़ संस्कृति को व्यवस्थित किया और कला-साहित्य को राज्यसंरक्षण देकर उसे सार्वजनीन और कालातीत स्वरूप प्रदान किया।
कला के क्षेत्र में पल्लवों का योगदान
(1) महाबलीपुरम की रॉक-कट शैली: महाबलीपुरम के ‘पंच रथ’ व ‘गंगावतरण’ जैसे रॉक-कट मंदिरों ने भारतीय शिल्पकला को वैश्विक मान्यता दिलाई। इनकी एकल-शिला नक्काशी, अनुपातबद्धता और विषयवस्तु धार्मिक व सामाजिक दोनों पहलुओं को दर्शाती है। यह शैली कला और भक्ति के अभूतपूर्व समन्वय का प्रतीक बनी।
(2) संरचनात्मक मंदिर निर्माण की शुरुआत: पल्लव शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय ने दक्षिण भारत में पत्थर के संपूर्ण मंदिरों की परंपरा आरंभ की। ‘शोर टेम्पल’ इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसने बाद के चोल एवं पांड्य मंदिर स्थापत्य को मार्गदर्शन प्रदान किया। यह परिवर्तन वास्तुकला में टिकाऊपन, भव्यता और प्रतीकात्मकता की ओर था।
(3) मूर्तिकला में गत्यात्मकता और भावाभिव्यक्ति: पल्लव मूर्तिकला में स्थिरता के स्थान पर गत्यात्मकता और यथार्थवादी भावों की अभिव्यक्ति प्रमुख रही। ‘गंगावतरण’ शिलाचित्र में जलधारा, तपस्या, पशु और मानव आकृतियाँ अत्यंत जीवंत हैं। इसने धार्मिक कथाओं को चित्रात्मकता के साथ जनमानस से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(4) चित्रकला की लुप्त परंपरा का पुनरुद्धार: पल्लवों ने दीवार चित्रकला को नया जीवन दिया, जो बाद में चोलों में परिपक्व हुई। कांचीपुरम और पनमलाई में मिले अवशेष धार्मिक आख्यानों पर आधारित हैं। रंग योजना, प्रतीकों का प्रयोग और कथा की अनुक्रमणिका में चित्रशैली ने दक्षिण भारत में चित्रकला को फिर से प्रतिष्ठित किया।
(5) दक्षिण-पूर्व एशिया पर स्थापत्य प्रभाव: पल्लव वास्तुशैली ने चंपा, कंबोडिया और जावा तक स्थापत्य प्रभाव छोड़ा। राजसिंह जैसे शासकों के सौजन्य से द्रविड़ शैली वहाँ के मंदिरों में दृष्टिगोचर होती है। यह सांस्कृतिक कूटनीति का सूक्ष्म रूप था, जिससे भारतीय कला वैश्विक संदर्भ में प्रभावी हुई।
साहित्य के क्षेत्र में पल्लवों का योगदान
(1) संस्कृत साहित्य को राजकीय संरक्षण: पल्लव राजाओं ने संस्कृत को राजकीय भाषा के रूप में अपनाया और विद्वानों को संरक्षण दिया। धर्म, दर्शन और काव्य के क्षेत्रों में रचनात्मकता बढ़ी। दंडी जैसे साहित्यकार इसी युग में पल्लव दरबार से जुड़े थे। उनके काल में संस्कृत गद्य व पद्य को विशेष समृद्धि मिली।
(2) तमिल साहित्य और भक्ति आंदोलन: पल्लवों के संरक्षण में तमिल भक्ति साहित्य फला-फूला। अलवार और नयनार संतों की रचनाएँ इसी काल में संकलित हुईं, जिन्होंने भाषा को धार्मिक अनुभव की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। इससे धर्म जनसामान्य तक पहुँचा और तमिल को शास्त्रीय भाषा के रूप में प्रतिष्ठा मिली।
(3) दार्शनिक साहित्य का संरक्षण: पल्लव शासन में बौद्ध, जैन और वैदिक परंपराओं के ग्रंथों को समान संरक्षण मिला। कांचीपुरम इन विचारधाराओं का संगम बना। धर्मों के मध्य संवाद के लिए शास्त्रार्थ एवं दर्शन ग्रंथों की रचना हुई, जिसने वैचारिक सहिष्णुता व ज्ञानपरंपरा की गहराई को दर्शाया।
(4) शिक्षा केंद्र के रूप में कांचीपुरम: कांचीपुरम को दक्षिण का नालंदा कहा गया। यहाँ गणित, ज्योतिष, वेद, तंत्र और दर्शन पढ़ाए जाते थे। चीनी यात्री युआन च्वांग ने इसकी प्रशंसा की। यह नगर न केवल धार्मिक, बल्कि बौद्धिक संवाद का केंद्र भी था, जिसने दक्षिण भारत को वैश्विक ज्ञान धारा से जोड़ा।
(5) धर्म और साहित्य का समन्वय: पल्लव युग में साहित्य धार्मिक उपदेशों का माध्यम बना। संस्कृत स्तोत्र, तमिल भक्ति पद, एवं उपदेशात्मक काव्य धर्म का प्रचार कर रहे थे। इससे भाषा केवल अभिजनों तक सीमित न रहकर जनमानस में उतर गई। यह समन्वय साहित्य को आध्यात्मिक गहराई और सामाजिक व्यापकता देता है।
कांची के पल्लवों ने कला व साहित्य को केवल संरक्षित नहीं किया, बल्कि उसे समाज की चेतना और राज्य की आत्मा में परिवर्तित किया। उनकी स्थापत्य शैली और साहित्यिक दृष्टि ने न केवल दक्षिण भारत, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण-पूर्व एशिया में सांस्कृतिक प्रभाव छोड़ा।